खेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक के आरटीआई संबंधी प्रावधान में संशोधन किया है जिसके तहत केवल उन्हीं संस्थाओं को इसके दायरे में रखा गया है जो सरकारी अनुदान और सहायता पर निर्भर हैं और इससे बीसीसीआई को काफी राहत मिली होगी।
खेलमंत्री मनसुख मांडविया ने 23 जुलाई को लोकसभा में यह बिल रखा जिसके प्रावधान 15 (2) में कहा गया है कि ‘‘किसी मान्यता प्राप्त खेल संगठन को इस अधिनियम के तहत अपने कार्यों, कर्तव्यों और शक्तियों के प्रयोग के संबंध में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण माना जाएगा। ’’
आरटीआई बीसीसीआई के लिए एक पेचीदा मुद्दा रहा है जिसने इसके अंतर्गत आने का लगातार विरोध किया है क्योंकि बोर्ड अन्य राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) के विपरीत सरकारी सहायता पर निर्भर नहीं है। विधेयक में संशोधन से इन आशंकाओं पर विराम लग गया।
एक जानकार सूत्र ने बताया ,‘‘संशोधित प्रावधान सार्वजनिक प्राधिकरण को एक ऐसी संस्था के रूप में परिभाषित करता है जो सरकारी धन या सहायता पर निर्भर है। इस संशोधन के साथ सार्वजनिक प्राधिकरण की स्पष्ट परिहो गई है।’’
सूत्र ने कहा ,‘‘ अगर ऐसा नहीं किया जाता तो यह एक अस्पष्ट क्षेत्र होता जिसके कारण विधेयक अटक सकता था या उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती थी। इसलिए सार्वजनिक धन से जुड़ी कोई भी चीज़ आरटीआई के दायरे में आएगी।’’
उन्होंने आगे कहा ,‘‘ अगर राष्ट्रीय महासंघ सरकारी सहायता नहीं भी ले रहा है तो भी अगर उसके टूर्नामेंटों के आयोजन या संचालन में किसी तरह की सरकारी सहायता मिली है तो उससे सवाल किया जा सकता है। सरकारी सहायता सिर्फ धन ही नहीं बल्कि बुनियादी ढांचे के संदर्भ में भी है।’’
बीसीसीआई ने पहले कहा था कि विधेयक पर टिप्पणी करने से पहले वह इसका अध्ययन करेगा।
आरटीआई अधिनियम के अनुसार, सार्वजनिक प्राधिकरण वह संस्था या निकाय है जो संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा बनाया गया हो। इसमें सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित निकाय भी शामिल हैं।
विधेयक के कानून बनने पर बीसीसीआई को स्वयं को एनएसएफ के रूप में रजिस्टर करना होगा क्योंकि क्रिकेट 2028 लॉस एंजिलिस ओलंपिक में टी20 प्रारूप में पदार्पण करने जा रहा है।
जवाबदेही लाने की कवायद में विधेयक में राष्ट्रीय खेल बोर्ड (एनएसबी) का भी प्रावधान है और सभी एनएसएफ को केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता लेने के लिये उससे मान्यता लेनी होगी।
एनएसबी में एक अध्यक्ष होगा और इसके सदस्य केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किये जायेंगे। ये नियुक्तियां शोध सह चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर होगी। इस समिति का अध्यक्ष कैबिनेट सचिव या खेल सचिव होगा और इसमें भारतीय खेल प्राधिकरण के महानिदेशक , दो खेल प्रशासक होंगे जो किसी एनएसएफ में अध्यक्ष, महासचिव या कोषाध्यक्ष रह चुके हों।
इनके साथ ही एक खिलाड़ी होगा जो द्रोणाचार्य, खेल रत्न या अर्जुन पुरस्कार प्राप्त हो।
इसका एक और महत्वपूर्ण पहलू राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण है जिसके पास एक दीवानी न्यायालय के समान शक्तियाँ होंगी और यह महासंघों और एथलीटों से जुड़े चयन से लेकर चुनाव तक के विवादों का निपटारा करेगा। एक बार स्थापित होने के बाद न्यायाधिकरण के निर्णयों को केवल उच्चतम न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकेगी।
यह विधेयक प्रशासकों के लिए आयु सीमा के मुद्दे पर कुछ रियायतें दे रहा हैजिसके तहत 70 से 75 वर्ष की आयु के लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई है बशर्ते संबंधित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के नियम और उपनियम इसकी अनुमति दें। राष्ट्रीय खेल संहिता में चुनाव लड़ने के लिये आयु सीमा 70 वर्ष निर्धारित की गई थी।